आजकल किसान नए नए तरीके अपनाकर नई-नई तकनीक से खेती करके अच्छी कमाई कर रहे हैं।कई किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर अब नई फसलों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इससे उन्हें हर साल अच्छा मुनाफा तो हो ही रहा है। ऐसी खेती को बढ़ाने के लिए सरकार उनकी मदद भी कर रही है।
लगातार बढ़ रही है मांग
आपको बता दें कि देश में इन दिनों बांस की खेती की डिमांड बढ़ रही है साथ ही सरकार बांस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित भी कर रही है। बीबांस की खेती के लिए कई राज्य सरकारें किसानों को सब्सिडी दे रही हैं।तो अगर आप भी खेती को अपना पेशा बनाना चाहते हैं तो बांस की खेती कर सकते हैं।बांस की खेती की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे बंजर जमीन पर भी किया जा सकता है। साथ ही इसमें पानी की कम आवश्यकता होती है। एक बार लगाने के बाद बांस के पौधे से 50 साल तक उत्पादन लिया जा सकता है। बांस की खेती में ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं होती है। इन सब कारणों से किसानों का रुझान भी बांस की खेती की ओर बढ़ा है।
ऐसे करें बांस की खेती
ऐसे में जानते हैं कि आप किस तरह से इसका फायदा उठा सकते हैं और किस तरह से खेती कर सकते हैं। साथ ही हम आपको इस खेती से होने वाले प्रोफिट के बारे में बता रहे हैं, जिससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आप किस तरह से बांस की खेती कर सकते हैं।
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उन्नत किस्म के बीजों का करें चयन
बांस की खेती कश्मीर की घाटियों को छोड़कर कहीं भी की जा सकती है। भारत का पूर्वी भाग आज बांस का सबसे बड़ा उत्पादक है। एक हेक्टेयर भूमि पर बांस के 1500 पौधे रोपे जाते हैं। पौधे से पौधे की दूरी 2.5 मीटर तथा लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखी जाती है। बांस की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए। भारत में बांस की कुल 136 किस्में हैं। इन प्रजातियों में सबसे लोकप्रिय बम्बुसा ऑरैंडिनेसी, बम्बुसा पॉलीमोर्फा, किमोनोबम्बुसा फाल्काटा, डेंड्रोकलामस स्ट्रीक्स, डेंड्रोकलामस हैमिल्टनी और मेलोकाना बेकिफेरा हैं। बांस के पौधे की रोपाई के लिए जुलाई सबसे उपयुक्त महीना है। बांस का पौधा 3 से 4 साल में कटाई योग्य हो जाता है।
बांस की खेती से कमाई हम आपको बता दे की बांस की पहली कटाई रोपाई के चार दिनों के बाद की जाती है। एक अनुमान के मुताबिक बांस की खेती से 4 साल में एक हेक्टेयर में 40 लाख रुपये की कमाई हो जाती है। इसके अलावा बांस की कतारों के बीच खाली पड़ी जमीन पर अन्य फसलें लगाकर किसान बांस की खेती पर होने वाले खर्च की आसानी से वसूली कर सकते हैं। बांस की प्रूनिंग और प्रूनिंग भी साल में दो से तीन बार करनी पड़ती है। कटाई के समय निकलने वाली छोटी टहनियों को हरे चारे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
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