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वर्षों से मप्र के किसानों को कंपनी द्वारा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नाम पर ठगा जा रहा है – kisaan news

जानिए कैसे मप्र के किसानों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नाम पर ठगा जा रहा है – kisaan news

केंद्र सरकार नए कृषि कानूनों में कॉन्ट्रैक्ट फॉमिंग को किसानों के लिए भले ही लाभदायक बता रही हो, लेकिन मध्यप्रदेश के किसानों का अनुभव इस खेती को लेकर अच्छा नहीं रहा है। इसलिए आज किसान इस कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग वाले कानून को अपनाने के लिए तैयार नहीं है। तैयार भी है, तो शर्तों के साथ इंदौर, रतलाम, उज्जैन, झाबुआ, धार, होशंगाबाद, रायसेन ,हरदा, पिपरिया,छिंदवाड़ा और बैतूल में कुछ कंपनि कृषि की फसल ठेके पर कराती आ रही हैं। लेकिन कानूनी या अन्य कार्रवाई से बचने के लिए कंपनियां केवल मौखिक एग्रीमेंट करती हैं। एक्सपर्ट बताते हैं कि एग्री प्रोडक्ट वाली कंपनियां और एजेंट अपना माल बेचने समझौता करते हैं और फसल आने पर क्वालिटी के नाम पर या कोई अन्य समस्या बताकर उत्पाद खरीदने में आनाकानी करते हैं। कई कंपनियां के प्रदेश छोड़कर भागने के मामले भी सामने आए। करीब एक दशक पहले कुछ कंपनियों ने प्रदेश के किसानों से जेट्रोफा को फसल के लिए एग्रीमेंट किया था, लेकिन बाद में यह प्रयोग असफल हो गया।

ऐसे ही धान या अन्य फसल की वोनी कंपनी किसानों से करवाती है लेकिन जब फसल को खरीदने की बारी आती है तो कंपनी या तो केमिकल युक्त फसल का बहाना बनाकर फसल नहीं खरीदती या फिर कंपनी गायब हो जाती है मौखिक अनुवन्ध होने के कारण किसान क़ानूनी कार्यवाही भी नहीं करपाते है।

ऐसे केस जिनमे कॉन्ट्रैक्ट फॉमिंग के नाम से किसानों को ठगा गया –

केस-1

2015 में दावत ने रायसेन,भोपाल, होशंगाबाद सहित कई जिलों में किसानों से मौखिक एग्रीमेंट करते हुए बासमती की बोनी कराई।किसानों को आश्वासन दिया कि तीन हजार रुपए क्विंटल में धान खरीदेगे।अधिक उत्पादन होने पर कंपनी ने क्वालिटी के नाम पर सस्ते में धान खरीदा।किसानों को काफी नुकसान हुआ।

केस-2

दीक्षा हर्बल बायोटेक लि.ने कुक्षी,मनावर में 5 दर्जन किसानों से मुनगा, एलोरा, तुलसीऔर सफेद मूसली के लिए मौखिकसमझौता किया।कंपनी ने क्वालिटी के नाम पर फसल खरीदने से इंकार कर दिया। किसान उत्पादक संस्था नर्मदा वैली ने मध्यस्थता की भूमिका निभाई थी।जब वह भाग गई तो किसान थाने चले गए

केस-3

2014-15 में माइक्रोमडास कंपनी ने बड़वानी की ओझर तहसील में 15 किसानों को लौकी और कपास की फसल के लिए मौखिक एग्रीमेंट किया। कंपनी ने बीज मुहैया कराया था। इस फसल से किसानों को एक-एकलाख रुपए का फायदा हुआ था। बाद में कुछ कारण गिना कर कंपनी ने एग्रीमेंट से हाथ खींच लिए

केस-4

फ्रांस की कंपनी एक्सरीयल ने छतरपुर के बिजावर और जतारा के किसानों से एग्रीमेंट कर जौकी फसल लगवाई। इनकी जौ हरियाणा में बीयर फैक्ट्री में भेजी जाती थी।कंपनी ने पहले साल तो किसानों को अच्छा खासा पैसा दिया, लेकिन अगले साल हाथ खड़े कर दिए। वजह यह थी कि उसे हरियाणा में स्थानीय किसानों से बेहतर जौ मिल रही थी।

एक दर्जन कंपनियां खरीद रही माल

फिलहाल दावत, कारगिल, एडीएम, संघवीफुड्स, पंतजलि(रुचिसोया), प्रेस्टीज आदि एक दर्जन से अधिक ट्रेडिंग और मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां किसानों से मंडियों के बाहर अनाज खरीद रही हैं, लेकिन इसके लिए एग्रीमेंट नहीं होता है।एक दिन पहले या मौके पर अनाज की क्वालिटी के आधार पर वह रेट तय करती हैं।

बिचौलिए और एजेंट सक्रिय

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नाम पर बिचौलिए और एजेंट प्लाटिंग मटेरियल खपाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करते थे.लेकिन फसल आने पर भाग जाते थे।अब जो कानून आ रहा है,उसमें भी कई खामियां है। यदि इसमें 3 से 5 साल का एग्रीमेन्ट हो, कंपनी के स्तर पर रिकवरी का रिस्क हो और विवाद की स्थिति में सिविल कोर्ट में मामले की सुनवाई हो ,तो खेती में इस तरह का प्रयोग सफल हो सकता है।
-सुरेशमोटवानी, एग्री एक्सपर्ट, भोपाल

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