गांजे की खेती से होती है लाखो की कमाई, जाने कैसे मिलता है लायसेंस

गांजे की खेती नशीले प्रदार्थ के रूप में की जाती है | इसके पौधों से अनेक प्रकार की विधियों का इस्तेमाल कर गांजे को तैयार किया जाता है, जो एक बहुत ही मादक पदार्थ होता है | इसे मनोसक्रिय मादक के रूप में उपयोग करते है | मादा पौधों पर आने वाले फूल, पत्ती व् तनो को सुखाकर सामान्य गांजा तैयार करते है | गांजे का सेवन मानव शरीर की उत्तेजना को बढ़ाता है, तथा इसमें मिलाई जाने वाली तम्बाकू मिरजी कैंसर का मुख्य कारण होती है | इसका सेवन करने वाले लोगो के चेहरे पर काले रंग के दाग धब्बे पड़ने लगते है | इसके अलावा मनोरुग्ण रोग के इलाज में भी गांजा प्रयोग किया जाता है | फ़्रांस के लोग गांजे का सेवन आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए करते है, तथा भारत में गांजा पूरी तरह से प्रतिबंधित है | विश्व का सबसे अच्छी गुणवत्ता वाला गांजा मलाना हिल्स हिमाचल में उगता है

गांजे की खेती अधिक मुनाफे वाली खेती होती है, किन्तु इसकी खेती भारत में करना और रखना दोनों ही पूरी तरह से प्रतिबंधित है | लेकिन कुछ राज्यों में विशेष छूट प्राप्त कर इसकी खेती की जा सकती है | सबसे पहले आप यह जान ले कि खेती भांग की होती है, गांजे की नहीं | भांग और गांजा दोनों ही एक प्रजाति के पौधों से पाए जाते है | जिसमे इसके पौधों को नर और मादा के रूप में विभाजित कर गांजा और भांग तैयार किया जाता है | नर पौधों से भांग तथा मादा पौधों से गांजा बनता है | इन दोनों ही चीजों का निर्माण जिस पौधे से होता है, उसे कैनाबिस कहा जाता है |

भारत के वह किसान भाई जो गांजे की खेती करना चाहते है, वह प्रशासन से अनुमति प्राप्त कर इसे ऊगा सकते है | किन्तु तय मानक पूर्ण होने के पश्चात् की भांग की खेती के लिए अनुमति प्राप्त होती है | यदि आप भी गांजा की खेती से अधिक मुनाफा कमाना चाहते है, तो इस लेख में आपको गांजा की खेती कैसे होती है (Cannabis sativa Farming in Hindi) तथा गांजा की खेती का लाइसेंस कैसे प्राप्त करे, और गांजे का भाव कितना होता है, के बारे में विशेष जानकारी दी जा रही है |

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गांजे का पौधा (Hemp Plants)

गांजा एक किस्म का मादक द्रव्य होता है, जिसे कैनाबिस सैटाइवा नामक वनस्पति पौधे से प्राप्त किया जाता है | यह कनाब्वायडी समुदाय का पौधा है, जो मध्य एशिया का आदिवासी है, किन्तु इसे उष्ण कटिबंध व् समशीतोष्ण प्रदेशो में स्वयंजात या कृषिजन्य रूप में पाया जाता है | भारत में इसके बीजो को वर्षा ऋतु के मौसम में लगाते है|

इसका पौधा 4 से 8 फ़ीट तक ऊँचा होता है, जिसमे निकलने वाली पत्तिया करतलाकार, तीन से आठ भागो में विभक्त और लम्बी नीचे की और लटकी हुई होती है| इसका फल गोलाई लिए हुए बीज की तरह गोल आकार का होता है | कैनाबिस के पौधों से ही भांग, गांजा और चरस को तैयार करते है|

गांजे की खेती में सहायक मिट्टी, जलवायु (Cannabis sativa Farming Soil, Climate)

गांजे की खेती में किसी विशेष मिट्टी की जरूरत नहीं होती है| इसे सामान्य भूमि में भी आसानी से ऊगा सकते है | इसकी खेती में नम भूमि की जरूरत होती है, तथा ठंडा जलवायु में इसके पौधों की रोपाई की जाती है | सामान्य P.H. मान वाली भूमि में गांजे को आसानी से उगा सकते है |

गांजा की खेती का लाइसेंस (Hemp Cultivation License)

भारत में भांग पर पूरी तरह से रोक लगी हुई है | भारत सरकार द्वारा वर्ष 1985 में नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ (Narcotics Drugs and Psychotropic Substances) अधिनियम के अंतर्गत इसकी खेती को प्रतिबंधित कर दिया गया था |

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लेकिन यही NDPS अधिनियम औद्योगिक उद्देश्य व् बागवानी हेतु राज्य सरकारों को भांग की खेती के लिए अनुमति प्रदान करता है | NDPS Act के अनुसार केंद्र सरकार कम टीएचसी मान वाली गांजे की किस्मो पर परीक्षण और अनुसंधान करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है | किन्तु इसमें भी केंद्र सरकार द्वारा एक सतर्कता बरती जाएगी, जिसमे भांग को केवल औद्योगिक या बाग़वानी उद्देश्य हेतु उगाने के लिए अनुमति दी जाएगी, तथा अनुसंधान से मिले नतीजों पर फैसला किया जायेगा |

भांग की खेती में लाइसेंस प्राप्त करने के लिए प्रति हेक्टेयर खेत के हिसाब से एक हज़ार रूपए का शुल्क देना होगा, साथ ही बीजो को एक जिले से दूसरे जिले में लाने के लिए डीएम की अनुमति होनी भी जरूरी है | इसके अलावा डीएम द्वारा फसल की जाँच भी की जाती है, और तय मानक से अधिक भूमि पर खेती करने पर उस क्षेत्रफल की फसल नष्ट कर दी जाएगी |

गांजे के उपयोग (Hashish Uses)

गांजा और चरस का उपयोग तंबाकू के साथ धूम्रपान के रूप में करते है, तथा भांग को एशियावासियों द्वारा शक्कर व् अन्य पेय पदार्थो के साथ इस्तेमाल करते है | इन तीनो ही मादक पदार्थो में मनोल्लास, चिकित्सा एवं अवसादक गुण पाए जाते है, जिस वजह से इसे प्राचीन काल से इस्तेमाल में लाया जा रहा है | 

इसमें निद्राकर, पाचन, वेदनानाशक, दीपन, कामोत्तेजक, ग्राही और आक्षेपहर होता है, तथा अतिसार, काली खाँसी, पाचनविकृति, अनिद्रा, प्रवाहिका और आक्षेप में भी लाभकारी है | यदि आप बेहद या निरंतर इसका सेवन करते है, तो आपको अनिद्रा, क्षुधानाश, दौर्बल्य और कामावसाद की समस्या हो सकती है |

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भांग और गांजे में अंतर (Difference Between Hemp and Ganja)

  • अधिकतर लोग भांग और गांजे को बिल्कुल अलग समझते है, किन्तु सच यह है, कि यह एक ही पौधे के दो अलग-अलग रूप है |
  • इसमें पौधे की नर प्रजाति भांग और मादा प्रजाति गांजा कहलाती है | गांजे में भांग की तुलना में अधिक मात्रा में टीएचसी – ‘टेट्राहाइड्रोकार्बनबिनोल’ मौजूद होता है |
  • इसके पौधों, फूल, पत्ती व् जड़ को सूखाकर गांजा तैयार करते है, वही पत्तियों को पीसकर भांग तैयार करते है |
  • इसका पौधा पूर्ण रूप से भारतीय है, जिसे प्राचीन काल से इस्तेमाल में लाया जा रहा है | भारत में गांजे पर प्रतिबंध लगा हुआ है, जबकि भांग को खुलेआम इस्तेमाल किया जाता है |

गांजे की खेती के लिए आवेदन (Hemp Cultivation  Application)

उत्तराखंड शासन के अनुसार कोई भी व्यक्ति जिसकी स्वयं की भूमि है, व् भूमि पत्ते पर ली है | भांग की खेती के लिए अनुमति ले सकते है | जिन व्यक्तियों के पास खुद की जमीन नहीं होती है, वह वाणिज्यिक व औद्योगिक साझेदारी कर भांग की खेती की अनुमति प्राप्त कर सकते है |

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भांग की फसल के लिए अनुमति लेने वाले व्यक्ति को भूमि का विवरण, क्षेत्रफल व् सामग्री भण्डारण के विवरण की जानकारी के अतिरिक्त चरित्र प्रमाण पत्र लिए हुए डीएम के सम्मुख आवेदन करने की जरूरत होती है | अनुमति प्राप्त करने के पश्चात् किसान भाई मानक के अनुसार भांग की खेती कर सकते है |

गांजे का भाव (Ganja Price)

हमारे देश में गांजे का बाज़ारी भाव अलग-अलग राज्यों में भिन्न होता है | ओड़िसा राज्य में गांजे की कीमत 500 से लेकर 1000 रूपए प्रति किलो के आसपास है, वही राजस्थान में गांजा 6,500 रूपए प्रति किलो है| इसके अलावा छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में गांजा 10,000 रूपए / KG है, और उत्तरप्रदेश, दिल्ली व् बिहार में गांजे को 20 से 25 हज़ार रूपए प्रति किलो के भाव पर बेचा जाता है| जिस वजह से गांजा अधिक से अधिक कमाई करने का एक बहुत ही सरल उपाए है |

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