आज के दौर में कृषि वैज्ञानिक सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े किसानों को ऐसे तकनीकी पहलूओं से अवगत करा रहे हैं, जिन से उन की आय में इजाफा होने के साथ साथ कम से कम पूँजी की जरूरत पड़े| यदि इसे फायदे के नजरिये से देखें तो हर कृषि कार्य के अंतिम उत्पाद को दुसरे कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाता है| इस प्रकार कृषि आधारित कामों के चक्र को अपनाने से कम लागत में ही टिकाऊ कृषि को बढ़ाया जा सकता है|
खेत की तैयारी
फसल उत्पादन मुख्य कृषि आधारित काम है, जिस से प्राप्त उपज का इस्तेमाल इंसान किसी न किसी रूप में जरूर करता हैं|
इस काम में भारत की 75 फीसदी से ज्यादा आबादी जुड़ी हुई है| इस में निम्न तकनीकी बातों पर ध्यान देने से लागत में कमी कर के ज्यादा उपज हासिल की जा सकती है :
खेत की तयारी में गर्मी की जुताई व पलटाई का खास योगदान होता है, क्योंकी इस से जमीन में 1 फूट नीचे मौजूद कड़ी परत टूट जाती है| इस से तमाम कीट व खरपतवार के बीज भी नष्ट हो जाते हैं इस के अलावा मिट्टी में पानी सोखने की कूवत भी बढ़ जाती है| मिट्टी नर्म होने से जड़ों का विकास होता है| इस तरह से खेत की उत्पादन कूवत बढ़ जाती है|
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अगेती बोआई
अमूमन किसान फसल की बोआई अपनी सुविधानुसार करते हैं| वे मानसून शुरू होने के बाद खेत की तयारी, बीज का चुनाव, उर्वरक प्रबंधन व बोआई वगैरह करते हैं| जबकि शोधों के आधार पर यह साफ हो गया है कि अगेती बोआई होने से अच्छा जमाव होने के साथ साथ कीटों व बीमारियों का कम से कम हमला होता है और अच्छी उपज प्राप्त होती है|
पौधों की सही तादाद
तमाम किसानों को लगता है कि खेत में जितने ज्यादा पौधे होंगे, उतने ही ज्यादा उपज होगी| प्रति इकाई क्षेत्रफल में पौधों की कितनी तादाद अधिकतम उपज दे सकती है, इस पर किसानों का ध्यान ही नहीं जा पाता है| खेत में जब जरूरत से ज्यादा पौधे होते हैं, तो उन में विकास को ले कर संसाधनों के इस्तेमाल के लिए आपस में ही प्रतियोगिता शुरू हो जाती है, जिस से पौधों की मेटाबोलिक क्रियाओं ओर उल्टा असर पड़ने के कारण उपज में भरी कमी हो जाती है|
वर्तमान समय में वैज्ञानिकों द्वारा हर फसल के लिए दूरी तय की जा चुकी है| अब बिना किसी फालतू खर्च के इकाई क्षेत्रफल में पौधों की तय तादाद रखने से 25 फीसदी तक उपज में इजाफा किया जा सकता हैं|
खरपतवार नियंत्रण
फसल के साथ उगने वाले खरपतवार 30 से ले कर 96 फीसदी तक उपज का नुकसान करते हैं| ये कीटों व बीमारियाँ को सहारा देने के अलावा नमी, स्थान, प्रकाश व पोषक तत्त्वों के लिए फसल से मुकाबला कर के उसे बर्बाद कर देते हैं| इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि उन्हें पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए, समय पर पूरी तरह से खरपतवार नियंत्रण करने से उपज में 33 फीसदी तक का इजाफा किया जा सकता है|
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जैव उर्वरकों का इस्तेमाल
जैव उर्वरक (बायोफर्तिलाइजर) सहजीवी या असह्जीवी द्वारा फसल को वायूमंडल में मौजूद गैसीयनाइट्रोजन को सीधे मिट्टी के जरिए मुहैया करा कर उत्पादन में 12-15 फीसदी तक का इजाफा करते हैं| इन इस्तेमाल से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता व संख्या बढ़ती हिया| इन का इस्तेमाल हमेशा बीज या कम्पोस्ट के माध्यम से करते हैं, क्योंकी इन की बहुत ही कम मात्रा की जरूरत पड़ती है, इन पर आने वाला खर्च लाभ के मुकाबले बहुत कम होता है|
सहफसली खेती
एक तय समय व जगह में 2 या ज्यादा फसलों को एक साथ उगाना सहफसली खेती कहलाती है| इस में एक ओर जहाँ जोखिम की संभावना कम हो जाती है, वहीं दूसरी ओर प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिक उपज प्राप्त होती है|
इस खेती को करने में मुख्य फसल के साथ ऐसी सहफसल चुननी चाहिए, जिस के मांग अलग न हो तथा मुख्य फसल से फसल से पहले तैयार हो जाए, इस प्रकार सहफसली खेती करने से 2 फसलों की उपज एक साथ मिल जाती है|
फल सब्जी उत्पादन
आर्थिक रूप से कमजोर किसान अपनी फसल के साथ साथ फल, सब्जी का उत्पादन कर के साल भर आमदनी का जरिया बनाए रख सकते हैं| यदि मौसमी सब्जी को पहले या बाद में बनाए रख सकते हैं| यदि मौसमी सब्जी को पहले या बाद में उत्पादन कर के बाजार में उतारा जाए तो इस से ज्यादा लाभी मिलता है, इसी तरह फलदार पौधे जैसे केला, पपीता, करौंदा, आवंला, बेर व बेल वगैरह को खेत के चारों तरफ लगा कर अलग से आय प्राप्त कर सकते हैं|
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इन पेड़ों से खेत हिफाजत भी हो जाती है| इस के अलावा जैम, जेली, आचार, मुरब्बा, सौस, केचअप, कैंडी, स्क्वैश व शरबत वगैरह बनाने का काम कर के भी छोटे मंझोले किसान आर्थिक रूप से मजबूत
मशरूम उत्पादन
मशरूम कम लागत में ज्यादा आमदनी देने वाली फसल है| इस में प्रोटीन सहित तमाम पोषक तत्त्व काफी मात्रा में पाए जाते हैं| आर्थिक रूप काफी मात्रा में पाए जाते हैं| आर्थिक रूप से पिछड़े भूमिहीन, बेरोजगारी नवयुवकों के लिए यह आमदनी का अच्छा साधन बन सकता है| इस की मांग उत्सवों, शादी की पार्टियों व होटलों वगैरह में साल भर बनी रहती है|
मुर्गी पालन
छोटे व मझोले किसान सीमित क्षेत्रफल में हवादार शेड बना कर आसानी से मुर्गी पालन कर सकते हैं| रोजाना 2-3 घंटे समय दे कर 200- 250 ब्रायलर या 150 लेयर पाले जा सकते हैं| ब्रायलर 40-45 दिनों में बढ़ कर बेचने के लिए तैयार हो जाते हैं| मुर्गी की बीट (कार्बनिक खाद) पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के कारण फसल उत्पादन बढ़ाती हैं|
बकरी पालन
बकरी पालन गरीब किसानों के लिए एक जोखिम कारोबार है| बकरी को गरीबों की गाय इसलिए कहा जाता है, क्योंकी यह काम देखरेख में दूध के साथ 1 बार में कई बच्चे पैदा करती है| हर ब्यात के बाद 6-7 महीने के अंदर यह फिर से गाभिन हो जाती है|
इस व्यवसाय को 2-3 बकरियों से शुरू कर के 1 साल में 10-12 बकरियां पैदा हो जाती हैं| दुसरे साल में बकरियां का झुंड बन जाता है| समय समय पर बकरों या बकरियां को बेच कर आमदनी होती रहती है| बकरी पालन से फसलों के लिए मूल्यवान कार्बनिक खाद मिलती हैं, जो मिट्टी में पोषक तत्त्वों की पूर्ति के साथ साथ कार्बन का स्तर भी बढ़ाती है|
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मधुमक्खी पालन
किसान तकनीकी जानकारी ले कर शुद्ध शहद का उत्पादन आसानी से कर सकते हैं| इसे शुरू करने के लिए मधुमक्खी का बाक्स व एक कालोनी को खरीदना पड़ता है इस के बाद मधुमक्खियाँ अपनी कालोनी बढ़ाते हुए शहद उत्पादन करती रहती हैं|जाड़े के मौसम में फूल वाली फसलें खूब होने के कारण 4-5 बाक्स रखने से रोजाना 1 बोतल शुद्ध शहद मिलता है, जिसकी बाजार में कीमत करीब 100 रूपए होती है| इस व्यवसाय से मोम के रूप में अतिरिक्त लाभ होता है|
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