जीवामृत jivamrit क्या है जीवामृत बनाने की आसान विधि और उपयोग

jivamrit banane ki vidhi आसानी से जीवामृत बनाने की विधि, फायदे, उपयोग कैसे करते है यहां बताया गया है। जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है। जिसको गोबर के साथ पानी में कई और पदार्थ मिलाकर तैयार करते हैं। organic खेती में जीवामृत अमृत की तरह है यह उत्पादन को बढ़ाने और खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ाने में उपयोग किया जाता है।

भूमि प्रकृति द्वारा दी गयी मनुष्य को अनमोल धरोहर है। परन्तु वर्तमान समय में फसलों और भूमि में रासायनिक उर्वरकों और खादों का अधिक प्रयोग होने पर यह धीरे-धीरे बंजर होती जा रही हैं और फसलों की पैदावार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इससे बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ता जा रहा हैं क्योकि यह हमारे खाने के साथ होकर यह हमारे स्वास्थ्य को भी खराब कर रहा है। जिसका परिणाम अब हाल ही में कोरोना जैसी महामारी में देखा जा रहा है। जिससे मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती जा रही हैं और ये ही कारण है कि रोगों पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं।

केंसर जैसी गंदी बीमारियों का मुख्य कारण ही रासायनिक युक्त अनाज का सेवन ही है। इसी बीच जीवामृत भूमि व प्रकृति के लिए वरदान साबित हो सकता है हम जीवामृत का प्रयोग करके इस मसले से छुटकारा पा सकते हैं क्योंकि यह एक प्राकृतिक अवयवों से तैयार किया गया द्रव पदार्थ हैं जो भूमि और खड़ी फ़सलों दोनों में प्रयोग कर सकते हैं।

जीवामृत क्या है

जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है। जिसको गोबर के साथ पानी में कई और पदार्थ मिलाकर तैयार करते हैं। जो पौधों की बढवार और विकास में सहायक है और भूमि में कार्बन की मात्रा भी बढ़ाती है। यह फसलों की विभिन्न रोगाणुओं से सुरक्षा करता है तथा पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है जिससे पौधे स्वस्थ रहते हैं तथा फसल से बहुत ही अच्छी पैदावार मिलती है। इसके परिणाम भी काफी समय से देखे जा रहे हैं।

जीवामृत बनाने की विधि . jivamrit banane ki vidhi

जीवामृत तैयार करने हेतु 10 किलो गाय का ताजा गोबर लेते हैं क्योकि ताजा गोबर में जीवाणु की संख्या अधिक रहती है और 10 लीटर गौमूत्र, और पुराना सड़ा हुआ गुड़ 1 किलो, अगर गुड़ न उपलब्ध हो तो 4 लीटर गन्ने का रस भी उपयोग कर सकते हैं तथा किसी भी प्रकार की दाल का 1 किलो आटा (अधिकतर बेसन का आटा उपयोग करते हैं) और खेत से 1 किलो मिट्टी प्रयोग करते हैं जो जीवाश्म युक्त हो और जहाँ पर कभी किसी कीटनाशक का प्रयोग न हुआ हों व 25 लीटर के 4 गेलन पानी की आवश्यकता होती है।

इसको तैयार करने के लिए 200 से 250 लीटर क्षमता का एक प्लास्टिक का पात्र (ड्रम) लेते हैं। ड्रम को हमेशा छांव में रखते हैं। गोबर का घोल तैयार करके ड्रम में डाल लेते हैं उसके बाद गौमूत्र व अन्य पदार्थों का घोल बना कर इसमे मिला देतें है और ड्रम में पानी 200 लीटर तक कर देते हैं और उसके बाद इसे ऊपर से किसी कपड़े से ढक देते हैं जिससे जीवाणुओं के लिए आसानी से हवा गुजर सके। फिर कम से कम 6 से 7 दिनों तक सड़ने के लिए छोड़ देते हैं। फिर उसके बाद इसका उपयोग करते हैं।

जीवामृत का उपयोग

1. किसान भाई जीवामृत का प्रयोग कई प्रकार से अपने खेतों में कर सकते हैं। इसके लिए सबसे बेहतरीन तरीका सिंचाई के साथ खड़ी फसल में देना है।

2. सिंचाई की प्रवाह विधि में जीवामृत सीधे क्यारियों में सिंचाई जल के साथ भी डाल सकते हैं। जो पानी के साथ घुल कर पौधों को प्राप्त हो जाता है।

3. इसके अलावा अच्छा तरीका प्रयोग का बूंद-बूंद सिंचाई विधि है जिसमें जीवामृत को किसी साफ कपड़े से छान कर पात्र में भर लेते हैं और सिंचाई में वेन्चुरी की सहायता से फसलों में उचित मात्रा में प्रयोग करते हैं।

4. इसका खड़ी फसल में स्प्रे भी कर सकते हैं। जीवामृत का प्रयोग खेत को तैयार करते समय सीधे भूमि पर ही कर सकते हैं। परन्तु इस प्रकार प्रयोग करने घोल की खपत अधिक होती है और फसल सही रूप से उपयोग नहीं कर पाती हैं।

जीवामृत प्रयोग करने पर भूमि और फसल में फायदे jivamrit ke fayde

1. जीवामृत भूमि के लिए अमृत हैं क्योंकि जब हम इसका प्रयोग करते हैं तब 1 ग्राम जीवामृत में लगभग 500 करोड़ जीवाणु डालते हैं। ये सारे जीवाणु पकाने वाले होते हैं जीवामृत उपयोग करते ही ये जीवाणु भूमि में उपस्थित अन्नद्रव्य (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, जिंक आदि) को तैयार करके पौधो की जड़ों में पँहुचाते है। जो उपज को बढ़ाने में सहायक हैं।

2. जीवामृत का लगातार प्रयोग करने पर भूमि लाभदायक सूक्ष्म जीव जैसे- शैवाल, केंचुआ, कवक, प्रोटोजोआ व बैक्टीरिया आदि सूक्ष्म जीवों में वृद्धि होती है जो पौधों में आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करने में मदद करते हैं।

3. भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती हैं और उसको बढ़ाने मे सहायक है। भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में भी इसके प्रयोग से सुधार होता है।

4. जीवामृत का प्रयोग करके उगाई गई सब्जी, फल, अनाज देखने में सुंदर और खाने में भी अधिक स्वादिष्ट होते हैं।

5. बीजों की अंकुरण क्षमता भी बढ़ती है।

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