Cotton Farming in India: जलवायु, मिट्टी, उन्नत बीज और कपास की खेती के आधुनिक तरीके

भारत की कृषि व्यवस्था में कपास (Cotton) एक महत्वपूर्ण नकदी फसल (cash crop) के रूप में जानी जाती है। इसे ‘सफेद सोना’ भी कहा जाता है क्योंकि यह कपड़ा उद्योग की रीढ़ है और लाखों किसानों की आजीविका से जुड़ी हुई है। भारत विश्व का सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है, और यहाँ इसकी खेती उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है।

इस ब्लॉग पोस्ट में हम कपास की खेती से जुड़ी जलवायु, मिट्टी, बीज, उन्नत किस्में, खेत की तैयारी और अन्य जरूरी जानकारियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

1. जलवायु की आवश्यकता

कपास एक उष्णकटिबंधीय फसल है, जो 8° से 30° उत्तरी अक्षांश और 60° से 80° पूर्वी देशांतर के बीच उगाई जाती है। इस फसल की सफलता का बड़ा हिस्सा जलवायु पर निर्भर करता है:

  • वर्षा: कपास की खेती 60 सेमी से 110 सेमी वर्षा वाले क्षेत्रों में सफल रहती है। 50 सेमी से कम बारिश वाले क्षेत्रों में सिंचाई की व्यवस्था आवश्यक होती है। बॉल बनने के समय हल्की बारिश रेशे की गुणवत्ता में वृद्धि करती है।
  • तापमान: न्यूनतम तापमान 10°C होना चाहिए, इससे कम तापमान पर फूल और बॉल गिर जाते हैं। 25°C-30°C तापमान वृद्धि के लिए उपयुक्त है। गूलर बनने के समय दिन का तापमान 30°C और ठंडी रातें अनुकूल मानी जाती हैं।
  • धूप: फसल पकते समय 8-10 घंटे तेज धूप और शुष्क वातावरण जरूरी होता है।

2. भूमि की उपयुक्तता

कपास की खेती COTTON FARMING के लिए निम्नलिखित प्रकार की भूमि उपयुक्त होती है:

  • काली मिट्टी (Black Cotton Soil) – उच्च जलधारण क्षमता वाली, विशेष रूप से मध्य व दक्षिण भारत में पाई जाती है।
  • जलोढ़, लाल और लैटराइट मिट्टी – उपयुक्त जल निकासी और पोषक तत्वों से भरपूर।
  • pH मान – भूमि का pH 5 से 8.5 के बीच होना चाहिए।
  • खाद एवं पोषण – बलुई मिट्टी में पोषक तत्त्वों की कमी पाई जाती है, इसलिए संतुलित खाद का प्रयोग आवश्यक है।

3. कपास की उन्नत किस्में

भारत में विभिन्न अनुसंधान केंद्रों द्वारा कपास की कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं:

किस्मसंस्थानक्षेत्ररेशे की लम्बाई
JK-2 (विक्रम)JNKVV, इंदौरमालवा, निमाड़22 मिमी
JK-HY-11JNKVV, इंदौरनर्मदा घाटी29-30 मिमी
RKV-HY-1PKV, अकोलाविदर्भ30.5 मिमी
DCH-32UAS, बंगलौरकर्नाटक29-30 मिमी
DS-59UAS, बंगलौररायचूर30 मिमी
पूसा 31IARIउत्तर भारतअच्छी गुणवत्ता
H.S. 45अगेती बुआईअच्छा जिनिंग
रासी नियो ( Rasi RCH 773)
अजीत  (Ajeet 199 BG II) 

4. खेत की तैयारी

COTTON FARMING खेत की तैयारी क्षेत्र की मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है:

  • काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में गर्मियों में एक गहरी जुताई बक्खर हल से की जाती है।
  • अन्य क्षेत्रों में, 3-4 जुताई देशी हल, हैरो या कल्टीवेटर से की जाती है।
  • जुताई की गहराई 8-10 सेमी होनी चाहिए।
  • पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा और समतल किया जाता है।
  • सिंचाई वाले क्षेत्रों में अप्रैल–मई में पलेवा करके बुआई की जाती है।

5. बीज का चयन और बुआई

कपास की बुआई के लिए बिनौले (Cotton Seed) का प्रयोग किया जाता है। बीज स्वस्थ, शुद्ध एवं कीट रोगमुक्त होना चाहिए। बुआई का समय क्षेत्र और जलवायु पर निर्भर करता है।

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6. सिंचाई, कीट और रोग प्रबंधन

  • सिंचाई: शुष्क क्षेत्रों में नियमित सिंचाई आवश्यक होती है, खासकर फूल आने और गूलर बनने के समय।
  • कीट/रोग: अधिक नमी और तेज हवा से कीट-पतंगों व बीमारियों का प्रकोप बढ़ता है। समय पर दवाओं और जैविक उपायों से नियंत्रण जरूरी है।

निष्कर्ष

कपास की खेती COTTON FARMING भारतीय कृषि व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। उचित जलवायु, उपयुक्त भूमि, उन्नत बीज, और वैज्ञानिक तरीके से की गई खेती से किसान अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं। उन्नत किस्मों और नई तकनीकों को अपनाकर किसान कपास की गुणवत्ता और मात्रा दोनों बढ़ा सकते हैं।

अगर आप भी कपास की खेती शुरू करना चाहते हैं, तो यह जानकारी आपके लिए एक मजबूत आधार बनेगी। खेती से जुड़े और भी अपडेट्स के लिए जुड़े रहें!

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