कीटनाशक कर रहे धरती को बाँझ, इतने दिनों में बंजर हो जायगी जमीन

हरित क्रांति के नाम पर खेतों में घोला जा रहा जहर

kisaan news. हरित क्रांति ने देश में खेती की तस्वीर को भले बदल दिया, लेकिन कीटनाशक और उर्वरकों के सहारे ज्यादा पैदावार लेने के लालच में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। यही कारण है कि हजारों साल से अजर-अमर मिट्टी की ‘सेहत’ कुछ ही सालों में इस कदर खराब हो चुकी कि है वह खेती के लायकही नहीं रही या यह भी कह सकते हैं कि बांझ होती जा रही है। इससे न धरती में रोगों से लड़ने की क्षमता बची है और न इसमें पैदा होने वाला अन्न खानेवालों में। और तो और धरती के भीतर सुरक्षित माने जाने वाले पानी को भी ‘जहरीला’ बना दिया है। इससे बचने को आरओ लगाए, पर उनका पानी भी खनिज का संतुलन बिगड़ने से सुरक्षित नहीं माना जा रहा है।

राजस्थान की बात करें तो यहां लगातार कीटनाशक का उपयोग बढ़ रहा है। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019-20 में 2290 मीट्रिक टन (टीजीएम) कीटनाशक का उपयोग हुआ। यह एक ही साल में बढ़कर 2390 मीट्रिक टन हो गया। इसके अलावा बाजार में अवैध रूप से भी कीटनाशक बिकने के मामले सामने आते रहते हैं।

इस तरह बढ़ा कीटनाशक का उपयोग

देश में कीटनाशकों का उपयोग हरित क्रांति के बाद बढ़ता चला गया। पहले जमीन में पोषक तत्वों की मात्रा का संतुलन बनाए रखने के लिए उर्वरक का इस्तेमाल किया गया। फिर धीरे-धीरे अधिक उपज के लिए कीटनाशक काम में लेने लगे। अब स्थिति सबके सामने है कि किस तरह हम ‘जहर’ के भरोसे खेती कर रहे हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग का पर्याप्त ज्ञान भूमिपुत्रों को नहीं है। इस ओर सरकारों ने गंभीरता से काम भी नहीं किया है। यही कारण है कि तमाम दावों के बावजूद कीटनाशक क्षेत्र पर सरकार की प्रभावी पकड़ नहीं है।

धरती का कीट नियंत्रण तंत्र लगभग खत्म :

कीटनाशक के उपयोग को खुली छूट से धरती का कीट नियंत्रण तंत्र लगभग खत्म हो गया है और उससे प्रकृति का चक्र भी प्रभावित हो गया है। धरती पर वनस्पति को खाने वाले कीट हैं तो उनको खा जाने वाले कीट भी हैं, जो वनस्पति को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का शिकार करते हैं। कीटनाशकों के उपयोग से यह श्रृंखला टूट चुकी है और दूध तक में जहर के तत्व पहुंच गए हैं।

यूरिया की अधिकता भी खतरनाक

जमीन में पोषक तत्व की कमी पूरी करने के लिए यूरिया का उपयोग किया जाता है। हालांकि इसका जरूरत से ज्यादा उपयोग मुश्किल पैदा कर रहा है। इससे नाइट्रोजन का चक्र बिगड़ रहा है। राजस्थान में किसानों को प्रति हैक्टेयर 220 किलो यूरिया डालने की सलाह दी जाती है। जबकि किसान इससे कहीं अधिक मात्रा में उपयोग कर रहे हैं।

खास तौर पर नहरी सिंचित क्षेत्र में। श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ क्षेत्र में औसतन प्रति हैक्टयर 300 किलो यूरिया डाला जा रहा है। जबकि प्रदेश में औसतन उपयोग 150 किलो है। अधिक सिंचाई के साथ ज्यादा यूरिया से भूजल में नाइट्रेट बढ़ती है। पंजाब की तरह प्रदेश के कुछ जिलों में विपरीत प्रभाव देखने को मिल रहा है।

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यह बोले विशेषज्ञ

कीटनाशकों के ज्यादा उपयोग से भूमि में प्रदूषण उत्पन्न हो जाता है। एक ही कीटनाशक बार- बार डालने या अधिक डालने से उसके अवशेष मिट्टी में रह जाते हैं, जिससे उपज पर भी असर होता है। यह उपज जीव-जन्तुओं के साथ ही मानव के लिए भी नुकसानदायक होता है। इससे कई बार बीमारी भी उत्पनन्न हो जाती हैं।

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