काले गेहूं को लेकर देश के किसानों में काफी उत्साह है किसान कही न कहीं से बीज लेकर काले गेहूं की वुबाई करते है क्यूंकि काले गेहूं को लेकर सोशल मिडिया पर काफी प्रचार किया जा रहा है। ऐसा बताया जाता है की काला गेहूं स्वस्थ्य के लिए लाभदायक है ऐसे प्रचार को देखते हुए उपभोक्ता भी कला गेहूं खरीदकर बिना किसी जाँच के उसकी रोटी का सेवन कर रहे है। लेकिन सच्चाई कुछ और ही है काले गेहूं की सच्चाई जब सामने आयी तब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने काले गेहूं की जाँच की। आपको इस पोस्ट में काले गेहूं की सच्चाई बता रहे है।
काला गेहूं परीक्षण में हुआ फेल
काले गेहूं को लेकर आई मीडिया रिपोर्ट के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के महानिदेशक के निर्देश पर गेहूं- जी अनुसंधान निदेशालय ने वर्ष 2018- 19 से दो साल तक काले गेहूं की किस्मों का परीक्षण किया। परीक्षण के दौरान काले गेहूं की उत्पादकता सामान्य गेहूं किस्मों की तुलना में काफी कम रही। साथ ही, कई रोगों का प्रकोप भी इस किस्म में देखने को मिला है। काले गेहूं की ट्रायल के पीआई रहे प्रधान वैज्ञानिक डॉ. ज्ञानेन्द्र सिंह ने बताया कि नाबी द्वारा तैयार काले गेहूं की तीन जनक द्रव्य (जर्मप्लाज्म) के ट्रायल संस्थान में लगाए गए। इसमें काले गेहूं की कथित 09, 10 और 11 जनक द्रव्य शामिल रहे। इन जनक द्रव्य के साथ गेहूं किस्म एचडी-3086 का चेक लगाया गया।
परीक्षण में 09 जनक द्रव्य 45.5 क्विंटल प्रति हैक्टयर उपज के साथ 33वें स्थान पर रहा। वहीं, 011 से प्रति हैक्टयर 45.6 क्विंटल उपज मिली। यह किस्म 36वें और 010 किस्म 53.3 क्विंटल उपज के साथ 24वें स्थान पर रही। जबकि, चेक वैरायटी 59.7 क्विंटल प्रति हैक्टयर उपज के साथ तीसरे स्थान पर रही है। मीडिया रिपोर्ट की माने तो काले गेहूं का विकास पंजाब के मोहाली स्थित राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (नाबी) ने किया है। नाबी के पास इसका पेटेंट भी है। अब सवाल यह है कि बिना भारत सरकार के अधिसूचित किए बिना इस संस्थान ने काले गेहूं की किस्म का बीज किसानों को कैसे पहुंचा दिया।
काला गेहूं पौष्टिकता में भी काला
लैब जांच में काला गेहूं की पौष्टिकता और गुणवत्ता पर सभी गेहूं-जी अनुसंधान निदेशालय ने सवालिया निशान लगाया है। संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सेवाराम ने बताया कि काले गेहूं की गुणवत्ता जांच में कुछ भी ऐसे तथ्य सामने नहीं आए है, जिससे कहा जा सके कि काला गेहूं पोषक तत्वों से भरपूर है। उनका कहना है कि काले गेहूं में प्रोटीन, आयरन, जिंक सहित दूसरे पोषक तत्वों की मात्रा सामान्य गेहूं किस्मों की तुलना में कम पाई गई है।
सोशल मीडिया पर सिर्फ अफवाह
राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, जयपुर के गेहूं-जौ अनुसंधान परियोजना से जुड़े डॉ. प्रदीप सिंह शेखावत ने बताया कि काले गेहूं को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह के दावे किये जा रहे है। लेकिन, ये दावे हकीकत से कोसों दूर हैं। इससे किसानों की लागत में इजाफा हो रहा है। साथ ही, उपभोक्ताओं को भी आर्थिक नुकसान जानकारी के अभाव में उठाना पड़ रहा है। ऐसे में प्रदेश के किसानों के साथ-साथ मीडियाकर्मियों और उपभोक्ताओं को भी जागरूकता से काम लेने की जरूरत है।
काला गेहूं मण्डिओ में भी नहीं बिकता
देश में किसान अधिकांश उपज मंडी में बेचता है लेकिन ऐसी बहुत सी उपज है जिन्हे मण्डिओ में नहीं ख़रीदा जाता। बात करे काले गेहूं की तो यह भी मंडी में नहीं बिकता है। किसान को इसे खुद ही उपभोक्ता को बेचना पड़ता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट के बाद काले गेहूं की मांग कम हो जायगी ऐसे में काला गेहूं किसान को काला कर देगा। अतः काले गेहूं की खेती सोच समझकर करें। पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद। किसान सम्बन्धी जानकारी और मंडी भाव के लिए हमारी वेबसाइट kisaan news से जुड़ें रहें।