समर्थन मूल्य से ज्यादा दलहल के रेट जानिए कब तक रहेगी तेज़ी

वर्ष 2021 भारतीय किसानों की खुशहाली वाला कहा जा सकता है, जबकि उन्हें मूंग, उड़द, के बाद तुअर, मसूर एवं चने के भाव भी समर्थन से अधिक मिलने जा रहे हैं। इसके पीछे अनेक कारण बताए जा रहे हैं। लंबा खींचता किसान आंदोलन, आयात सीमित मात्रा में, खरीफ में बेमौसम वर्षा के बाद रबी में मावठे की वर्षा के बाद मौसम में अचानक बदलाव आने से तापमान बढ़ गया है। इसका प्रभाव रबी में पक चुकी फसलों पर देखने को मिल रहा है। आने वाले माह में मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, पंजाब-हरियाणा में गेहूं, चना एवं अन्य फसलों पर देखने को मिल सकता है।

फसलों की उत्पादकता प्रभावित होने की आशंका व्यक्त की जाने लगी है। जनवरी-फरवरी माह में ठंड से गेहूं-चने की फसलें पकती है। इस वर्ष दालें महंगी बिक रही है। गरीबों के लिए सस्ते प्रोटीन का एकमात्र साधन दालें हैं। गरीब महंगी दालों का उपयोग नहीं कर सकेंगे। नैफेड के पास स्टॉक नहीं होने से प्रधानमंत्री योजना भी ठप रहेगी। केंद्र सरकार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी भी नहीं है कि महंगी दलहन का आयात कर मुफ्त में वितरित कराई जा सके।

देश में 70 वर्ष बाद लगभग सभी दलहन केंद्र सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से ऊपर बिकने लगी है। पिछले कई दशकों से केंद्र सरकारें समर्थन मूल्य की घोषणा जरूर करती थी किंतु किसानों के लिए मायने नहीं रखती थी। पिछले 5 वर्ष वर्तमान सरकार का कार्यकाल इसी तरह से व्यतीत हुआ है। चना समर्थन मूल्य के समीप आ चुका है और किसी भी दिन तुअर, मसूर के समान बड़ी छलांग लेगा।

2021 में दलहन के रेट

तुअर 6900 से 7100 (समर्थन मूल्य 6000) मसूर 5600 (5100) चना 5000 (5100) मूंग 7196 (7500 से 8000) उड़द 6000 (7500 से 8000) रुपए में बिक रहा है। समर्थन मूल्य पर बिकने के अनेक वजह बताई जा रही है। पिछले खरीफ एवं गर्मी में मूंग फसल वर्षा से खराब, यही स्थिति उड़द की बनी थी। पिछले महीने कर्नाटक एवं इस माह महाराष्ट्र में तुअर की फसल शुरू हुई है। मंडियों में आवकों का टोटा पड़ा हुआ है। ऐसी स्थिति कंपनियां खरीदी में उतर पड़ी और स्टॉकिस्ट पहले से ही सक्रिय थे।

अतः फसल के समय भावों में जो मंदी आती है, वह नहीं आ सकी और फिलहाल तो किसानों के भाग्य खुलते नजर आ रहे हैं। हालांकि अभी तक केवल 20-25 प्रतिशत फसल ही मंडियों में आई होगी। इसके अलावा फसल की खराबी के मुकाबले आयात कोटा कम दिया था। किसान आंदोलन तीन माह से अधिक समय से चल रहा है। इससे अंदरूनी रूप से सरकारी क्षेत्र में चिंता व्याप्त होना स्वाभाविक है। अतः सरकार परोक्ष-अपरोक्ष रूप से यह प्रयास कर रही है कि किसानों को उनकी उपज का पूरा मूल्य मिल सके।

चर्चा यह भी है कि यदि समर्थन भाव से कम भाव पर दलहन बिकती तब नैफेड भरपूर मात्रा में खरीदी कर सकती है। मंडियों में ऊंचे भाव होने से कंपनियां खरीद रही है। कंपनियां खरीद कर सरकार को सहयोग कर रही है। कंपनियां को देख स्टॉकिस्ट भी पीछे नहीं है। तेजी के इस माहौल में महाराष्ट्र में कोरोना माहमारी की वजह से मंडियों में कारोबार गड़बड़ा गया है। आवक कम पड़ गई है। इस बार कारोबारी खुश इसलिए अधिक हैं कि नैफेड के गोदाम खाली है। अतः कारोबार बिगाड़ने का अवसर नैफेड को नहीं मिलेगा।

तुअर, चना, एवं मसूर की फसलें आगामी 2 माह तक बाजार पर अपना प्रभाव दिखाएगी। लगभग यह तय माना जा रहा है कि रबी में फसलों के लिहाज से मौसम अनुकूल नहीं रहा है। कृषि मंत्रालय में कृषि एवं मौसम विशेषज्ञ होंगे। विशेषज्ञ ही सही आंकलन कर सकते हैं।

हाल ही में कृषि मंत्रालय ने दूसरा अग्रिम अनुमान जारी कर कहा है कि खाद्यान्नों का 30.33 करोड़ टन का रिकॉर्ड उत्पादन होने जा रहा है। मंत्रालय के अनुसार चावल, गेहूं, मक्का, चना, मूंगफली, और सरसों जैसी फसलों का रिकॉर्ड उत्पादन होने की उम्मीद जताई है। मंत्रालय ने रिकॉर्ड उत्पादन का श्रेय किसानों अथवा मेहनती वैज्ञानिकों के अनुसंधान एवं केंद्र सरकार की कृषि हितैषी सुविचारित नीतियों को साफतौर पर रेखांकित करता है। सरकार का फोकस गांव, गरीब, किसान और किसानी पर है।

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