पिछले दिनों देश में जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) सरसों की खेती की इजाजत दे दी गई है। जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति ने व्यावसायिक खेती के लिए इसे मंजूरी दी है। इसका देश भर के किसान संगठन और पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करने वाले लोग विरोध कर रहे है। जीएम मस्टर्ड को लेकर कहा जा रहा है कि इससे देश की कृषि व्यवस्था पर दुष्प्रभाव देखने को मिलेगा। इससे जुड़े तमाम पहलुओं को समझने के लिए महेंद्र कुमार ने 2005 में इस मसले को जनहित याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने वाली पर्यावरण विद अरुणा रोड्रिग्ज से बातचीत की।
सबसे पहले आप हमारे पाठकों के लिए आसान भाषा में बताएं कि GM Food crop क्या है ?
जीएम फसल उन फसलों को कहा जाता है जिनके जीन को वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित किया जाता है। जीएम फसलों के जीन में बायो-टेक्नॉलजी और बायो- इंजीनियरिंग के द्वारा परिवर्तन किया जाता है।
सरकार gm sarso की खेती के पक्ष में है तो इसका विरोध क्यों हो रहा है?
हम लोगों ने जीएम मस्टर्ड को लेकर 2005 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका डाली थी। बीटी कपास वर्तमान में एकमात्र जीएम फसल है। बीटी कपास को लेकर कहा जाता था कि इसको कीड़ों से कोई नुकसान नहीं होगा और उत्पादन ज्यादा होगा।
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मगर पिछले 17 वर्षों से बीटी कपास के उत्पादन में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है। भारत के किसानों से लगभग चार हजार करोड़ रुपये लिए गए हैं फसलों के संकरण (हाइब्रिडाइजेशन) के लिए देश की कुछ बड़ी कंपनियां जो कृषि संबंधित कार्य करती हैं, उनका मकसद है दूसरे प्रकार का जीएम मोडिफाइड क्रॉप बनाना।
ध्यान रहे, जिस फसल पर भी इसका प्रयोग किया जाएगा, वहां उस फसल के अलावा बाकी सब खत्म हो जाएगा। बाकी सब मतलब फसल में लगने वाले कीड़े, खर पतवार वगैरह। लेकिन इसके लिए कई प्रकार के घातक रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिनसे फसलों पर भी बहुत बुरा प्रभाव होता है।
भूमि की उर्वरकता भी खत्म होती है। सरकार एक तरफ तो ऑर्गेनिक फार्मिंग की बात करती है, दूसरी तरफ इस प्रकार की नीतियां लाकर खेती में रसायनों के प्रभाव को बढ़ाती है। हमारे देश में कृषि कार्य से महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग सभी जुड़े हुए हैं। रसायनों के प्रयोग से कृषि कार्य में लगे लोगों की सेहत खराब हो सकती है। अगर इसको नहीं रोका गया तो सही मायनों में कहा जा सकता है कि हमारी खेती जहरीली होती जाएगी। मस्टर्ड बहुत छोटा बीज होता है।