उत्तर भारत के केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक (कीट विज्ञान) डॉ. ऋषि कुमार के नेतृत्व में कपास उत्पादकता वृद्धि के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। बारिश के मौसम में रस चूसक कीटों का खतरा बढ़ा है। इसलिए 14 मई से अब तक हरियाणा और राजस्थान के करीब 109 जगहों पर 14 गांवों के खेतों का सर्वेक्षण सीआईसीआर सिरसा के वैज्ञानिकों की ओर से किया गया।
इसमें सफेद मक्खी (1-15 प्रति पौधा) आर्थिक कगार से नीचे और 10 जगहों पर हरा तेला (1 – 10 प्रति पौधा) और 41 जगहों पर थ्रिप्स चूरड़ा (2- 67 प्रति पौधा) आर्थिक कगार से ऊपर पाए गए। सर्वेक्षण में फेरोमोन ट्रैप या रोसेटी फूल या हरे टिंडों ( 0 – 9% ) में गुलाबी सुंडी का प्रकोप देखा गया।
जुलाई, अगस्त, सितंबर में सफेद मक्खी, हरा तेला व गुलाबी सुंडी का प्रकोप बढ़ सकता है। इसके मध्यनजर किसानों को वर्तमान स्थिति प्रबंधन क्रियाओं के बारे में सलाह दी है।
यह भी पढ़ें – धान में लगने वाले रोग एवं उनका सस्ता प्रबंधन Paddy Disease
कपास में फफूंद पत्ती धब्बा रोग पर नियंत्रण
अल्टरनेरिया व अन्य फफूंद पत्ती धब्बारोग, टिंडा जलन रोग एवं काली फफूंद नियंत्रण के लिए क्रेसॉक्सिम- मिथाइल 44.3 प्रतिशत एससी 1 मिली या एजोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डाईफेनोकोनाजोल 11.4 प्रतिशत एसपी @1 मिली लीटर छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करें।
चित्तीदार व अमेरिकन सुंडी ऐसे राकें
देशी व अमेरिकन कपास में चित्तीदार सुंडी व अमेरिकन सुंडी के नियंत्रण के लिए स्पिनोसेड 45 एससी (60 मिली) या फलुबेंडियामाइड 480 एससी (अमेरिकन सुंडी) (40 मिली) या इंडोक्साकार्ब 14.5 ईसी (200 मिली) प्रति एकड़ छिड़काव करें।
सफेद मक्खी होने पर
फ्लोनिकामिड 50 डब्ल्यूजी का करें इस्तेमाल डॉ. ऋषि कुमार ने बताया कि रस चूसक कीट व टिंडे की सुंडियां के नियंत्रण के लिए 0-60 दिन की अवस्था में नीम का तेल या नीम आधारित कीटनाशक (300-1500 पीपीएम) 5 मिली प्रति लीटर पानी व 1 ग्राम कपड़े धोने का पाउडर का घोल बना छिड़काव करें। सफेद मक्खी होने पर फ्लोनिकामिड 50 डब्ल्यूजी ( 80 ग्राम) या डाईनोटेफ्यूरान 20 एसजी (60 ग्राम) प्रति एकड़ प्रयोग करें।
खेती जानकारी व मंडी भाव ग्रुप से जुड़ें –