धान में लगने वाले रोग एवं उनका सस्ता प्रबंधन Paddy Disease

धान की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग लगते है जो फसल को बुरी तरह से प्रभावित करते है। धान रोगग्रस्त हो जाने के कारण कम उत्पादन देती है। धान सबसे प्रमुख खाद्यान फसल है। भारत धान का दूसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक देश है। जो देश एवं विदेश में चावल की पूर्ति करता है। धान का उत्पादन करने में धान की देख रेख करना जरुरी है।

धान की फसल की देख रेख के लिए किसान को धान में लगने वाले रोग का ज्ञान भी होना जरुरी है सभी प्रकार के रोग का अलग अलग टेक्निकल वाले दवाओं से उपचार किया जा सकता है। अगर रोग की सही तरह से पहचान कर ली जाती है तो किसान के लिए रोग से छुटकारा पाना आसान हो जाता है आगे जानते है धान में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनका उपचार।

धान के रोग

जीवाणु झुलसा या झुलसा रोग

धान का जीवाणु झुलसा रोग जीवाणु जनित होता है जो जेंथोमोनस ओरैजी नाम के जीवाणु से उत्पन्न होता है। इसका प्रकोप धान की पत्तिओं पर देखा जा सकता है। धान लगने के 20 से 45 दिन की उम्र तक एक रोग का अत्यधिक प्रकोप होता है। धान में यह रोग लगने से पत्तिओं का ऊपरी या नुकीला हिस्सा सूखने लगता है। धान की पत्ती पर पिले रंग के धब्बे उत्पन्न होते है।

जीवाणु झुलसा रोग का प्रवंधन

  • रोग से बचने के लिए धान का उचित तारीखे से बीज उपचार करें।
  • खेत में पानी की मात्रा कम कर दे।
  • धान की फसल में कम से कम यूरिआ खाद का उपयोग करें।
  • रासायनिक विधि द्वारा उपचार के लिए धान की फसल में हेक्साकोनज़ोने 5% या प्रोपिकाज़ोले नामक फंगीसाइड का स्प्रे करे।

झोंका रोग

झोंका रोग धान का सबसे अधिक लगने वाला रोग है जो धान की फसल को बुरी तरह प्रभावित करता है इस रोग का प्रकोप होने से धान की पत्ती में धब्बे बन जाते है। इसका प्रकोप सबसे पहले धान के पौधा के निचले हिस्से में देखा जा सकता है। झोंका रोग का प्रवंधन करने के लिए सबसे पहले खेत का पानी पूरी तरह से निकल देना चाहिए। एवं बीज का अच्छी तरह से बीज उपचार करना चाहिए।

गर्दन तोड़ neck blast

गर्दन तोड़ रोग धान की कुछ प्रमुख किस्मो में लगने वाला रोग है। धान में यह रोग धान की बाली निकलने के बाद लगता है जिसमे धान दाने पकने के समय बाली का तना सड़कर सूकने लगता है। और धान के दाने आधे पककर जमीन पर गिर जाते है। इस रोग का प्रकोप प्रमुख रूप से पूसा बासमती PB1, 1121, 1718 आदि किस्म में अधिक देखने को मिलता है। गर्दन तोड़ रोग के उपचार के लिए tricyclazole 75 wp फंगीसाइड का स्प्रे करना चाहिए।

हल्दी गांठ

धान की फसल में हल्दी गांठ रोग का प्रकोप धान के दाने पकने के समय होता है। इस रोग के प्रकोप से धान के दाने पूरी तरह से ख़राब हो जाते है धान के दाने फूटकर कालेरंग के हो जाते है और उनके अंदर पीले रंग का पाउडर निकलता है। धान में यह रोग तेज़ी के साथ फैलता है।

हल्दी गांठ रोग का उपचार करने के लिए जिन भी पोधो में इस रोग का प्रकोप दिख रहा है उन पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देने चाहिए ध्यान रहे की पौधे निकालते समय पिले रंग का पाउडर अन्य पौधे पर नहीं झड़ना चाहिए। रोग के उपचार के लिए ब्लाइटॉक्स 50 डब्लयु पी नामक कवकनाशी का प्रयोग करना चाहिए।

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