सर्वाधिक उत्पादन देने वाली गेहूं की किस्म DBW-303 wheat variety मैदानी क्षेत्र के किसानों की पहली पसंद है। गेहूं में अच्छे उत्पादन के लिए अच्छे बीज का होना जरुरी है। बीते सप्ताह उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और मध्य प्रदेश से गेहूं का बीज खरीदने पहुंचे किसानों ने सबसे अधिक इसी किस्म के बीज की खरीदारी की। इस बीज को गत वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व खाद्य दिवस के मौके पर देश को समर्पित किया था।
संस्थान की तरफ से गेहूं की किस्म DBW-303, DBW- 187 व DBW-222 का वितरण किया जा रहा है। किसानों की अधिक संख्या को देखते हुए प्रति किसान 10 किलोग्राम बीज उन किसानों को दिया जा रहा है, जिन्होंने संस्थान के पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराया था। dbw 303 के लिए रजिट्रेशन होना अब बंद हो गया है।
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संस्थान के निदेशक डा. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि करीब 17 हजार किसानों ने पोर्टल पर बीज लेने के लिए भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल बीज लेने पहुंचे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के किसान उत्पादन अच्छा होने व प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाए जाने के कारण इसे प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष राष्ट्र को किया था समर्पित भारतीय गेहू एवं जी अनुसंधान संस्थान में बोई गई। थी डीवीडब्लू-303 सौ. अनुसंधान केंद्र रजिस्ट्रेशन कराया था।
अभी तक लगभग 80 फीसद गेहूं का बीज मुहैया करा दिया गया है। तीनों प्रजातियों में सबसे ज्यादा डिमांड डीबीडब्ल्यू-303 की है। यह नई वैरायटी है और 80 प्रतिशत किसान इसकी डिमांड कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसान इस मातृ बीज (मदर सीड) से अगले साल के लिए अपना खुद का बीज तैयार कर सकेंगे। प्रगतिशील किसान अक्सर ऐसा ही करते हैं।
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WBW 303 wheat variety का उत्पादन
उन्होंने बताया कि यह अगेती किस्म है। किसान इसकी बुआई 25 अक्टूबर के बाद कर सकते हैं। इसका औसत उत्पादन 81.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। वहीं क्षमता की बात करें तो 97.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक इसका उत्पादन हो सकता है। हालांकि, उत्पादन बहुत कुछ स्थानीय जलवायु पर निर्भर करता है। •पोषक तत्वों से भरपूर और रोगरोधी भी डीबीडब्लू-303 में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है।
इसमें प्रोटीन की उपलब्धता 12.1 प्रतिशत है। इसकी रोटी अच्छी बनती है। ब्रेड व बिस्किट के लिए भी यह मुफीद है। 156 दिनों में इस वैरायटी की फसल पककर तैयार हो जाती है। खास बात यह भी है कि यह पीला, भूरा व काला रतुआ रोगरोधी किस्म है।
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