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धान में बढ़ रहा लीफ ब्लाइट रोग का खतरा, ऐसे करें पहचान और रोकथाम

मौसम में लगातार हो रही तापमान में वृद्धि की वजह से डबरा भितरवार अंचल में करीब 75000 हेक्टेयर में खड़ी धान की फसल में बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट bacterial leaf blight of rice रोग बढ़ता ही जा रहा है। इसकी वजह से करीब 25 प्रतिशत तक फसल में नुकसान भी हो चुका है। लेकिन रोग कंट्रोल में नहीं आ रहा है। वहीं कृषि वैज्ञानिकों की टीम इसके नियंत्रण के लिए गांव गांव में भ्रमण कर रही है और किसानों को सलाह दे रही है। दरअसल मौसम में नमी और तापमान में वृद्धि की वजह से यह रोग धान की फसल में होता है।

धान में bacterial leaf blight रोग की पहचान

bacterial leaf blight of rice रोग में पानी की शीर्ष सतह हल्के पीले या पुआल के रंग जैसी हो जाती है। इसके कारण पत्तियां सूख जाती हैं। इस रोग के कारण धान के पौधे में आसपास से उगने वाली नई पत्तियां सुख जाती है। जिसकी वजह से पौधा पनप नहीं पाता है।

सबसे ज्यादा यह रोग 1121, 1718 प्रजाति की धान में देखने को मिल रहा है। लगातार बढ़ रहे इस रोग ने किसानों की लागत भी दोगुनी कर दी है। किसान तरह-तरह के कीटनाशकों का फसल में छिड़काव कर रहे हैं, लेकिन रोग के कंट्रोल में नहीं आने के कारण किसानों की चिंताएं बढ़ने लगी है।

दलहन और तिलहन की फसल में भी नुकसानः अंचल में विगत कुछ दिनों पहले हुई बारिश से दलहन और तिलहन जैसे तिल, उड़द, मूंग सहित अन्य फसलों को नुकसान पहुंचा है। कई खेतों की हालत तो ऐसी है कि वहां फसल का नामोनिशान तक नहीं बचा है। ऐसे में किसानों का खाद बीज और जुताई पूरी तरह से बेकार चला गया।

bacterial leaf blight रोग की रोगथाम

रोग के प्रबंधन के लिए नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करें। कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 1.25 किलो ग्राम या कॉपर हाइड्रोक्साइड 53.8 प्रतिशत डीएल 1.5 लीटर या कासूगामाईसिन 5% और कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 45% डब्ल्यू पी 700 ग्राम प्रति हेक्टेयर प्रति 500 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। इसके अलावा छिड़काव के लिए पानी की संतुलित मात्रा का प्रयोग करें तथा इसमें किसी कीटनाशी या उर्वरकों का प्रयोग आपस में मिलाकर ना करें। इससे पौधों मैं नुकसान हो सकता है ।

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धान की फसल सूख रही

धान की फसल पर रोग के लक्षण आंख या नाव के समान बीच में चौड़े एवं किनारों में सकरी धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। धब्बा के बीच का भाग हल्के भूरे रंग का होता है। धीरे-धीरे यह धब्बे आपस में मिलकर पतियों को सुखा देते हैं। रोग के लक्षण तने के इंटरनोड तथा वाली के आधार पर दिखाई देते हैं, जिसके कारण बालियों में दाना नहीं बन पाता।

इसके लिए किसान ट्राईसाईक्लाजोल 40 प्रतिशत ईसी और हेक्साकोनाजोल 10% डब्लू जी 500 ग्राम या आइसोप्रोथिओलेन 40% ईसी 750 मिलीलीटर या कासुगामाईशिन 5% और कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी 700 ग्राम प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें नत्रजन उर्वरकों का प्रयोग ना करें तथा खेत में 2 सेंटीमीटर पानी भरकर रखें।

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