क्या है ‘कृषि विधेयक 2020’ ? इसके लिए ‘किसान आंदोलन’ क्यों हो रहा है। किसान बिल किसानों और सरकार के लिये आफत बन गया है । किसान इन 3 कृषि विधेयक बिलों के विरोध में आंदोलन भी कर रहे है।
केंद्र सरकार ने पार्लियामेंट में खेती और किसानों को लेकर तीन बिल पास कराए हैं। जिन पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने से ये तीनों बिल कानून बन चुके हैं। इन बिलों के विरोध में तमाम अपोजीशन पार्टियां और किसान का एक बड़ा समूह विरोध कर रहा है। साथ ही पंजाब में पिछले कई दिनों से किसानों द्वारा रेल रोको आंदोलन किया हुआ है और इन बिलों के विरोध में 8 दिसम्बर किसानों द्वारा भारत बंद का आह्वान किया गया जो कि काफी हद तक कामयाब भी रहा।
भारत की राजधानी दिल्ली से पूरे भारत में फैले किसान विरोध ने विश्व स्तर पर भी काफी हलचल पैदा की है लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि कृषि विधेयक 2020 का विरोध क्यों कर रहे हैं। 26 नवंबर के बाद से पंजाब और हरियाणा के किसानों ने राष्ट्रीय राजधानी की घेराबंदी कर दी है।
राज्यसभा में कृषि विधेयक 2020 का सफर
कृषि सुधार से जुड़े तीन विधेयकों में से दो विधेयकों को राज्यसभा में 20 सितम्बर, 2020 को पेश किया गया, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विधेयकों को सदन में रखा । कृषि संबंधी बिलों को राज्यसभा में ‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020’ तथा ‘कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा करार विधेयक 2020’ ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।
सदन में जबर्दस्त हंगामे और विवाद के बीच राज्य सभा में दो किसान बिल ध्वनिमत से पास कर दिए गए। इस दौरान विपक्षी पार्टियों ने सदन में जमकर नारेबाजी की और आरोप लगाया कि सदन की कार्यवाही नियमों के खिलाफ हुई है। दोनों बिल लोकसभा से पहले ही पास हो चुके हैं अब ये बिल राष्ट्रपति के पास भेजे जाएंगे।
क्या है एमएसपी ?
किसानों को अपने फसल में नुकसान नहीं हो, इसके लिए देश में किसानों के लिए एमएसपी- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP- Minimum Support Price) की व्यवस्था लागू की गयी है। इसमें अगर फसल उत्पादन की कीमत बाजार के मुताबिक कम मिलती है, तो सरकार उसे एमएसपी के हिसाब से खरीद लेती है। एमएसपी में सभी फसलों का न्यूनतम मूल्य तय कर दिया जाता हैं, ताकि किसानों को नुकसान से बचाया जा सके। एमएसपी पूरे देश के लिए एक होती है। साथ ही राज्य की सरकारें अपने-अपने राज्यों के किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रदान करती है।
किसानों की स्थिति पर एक नजर
आज भी भारत के कई छोटे किसान के पास उपयुक्त निवास स्थल नहीं हैं। जबकि बड़े किसानों का बहुत सुधार हुआ है, छोटे भूमि धारकों और सीमांत किसानों की हालत अब भी असंतोषजनक हैं। किसान पूरे देश का भरण पोषण करते हैं और आज इन किसानों की मेहनत के कारण ही हम शांति से अपने घर पर बैठकर भोजन कर पा रहे हैं लेकिन एक दुखद सत्य यह भी है कि वे साहूकार और बैंकों के कर्ज तले और भुखमरी से जूझ रहे हैं।
खेती में मौसमी आपदाओं, सरकारी कुव्यवस्थाओं, खेती में घाटे और किसानों पर आर्थिक संकट आने के कारण करीब ढाई तीन दशक से किसानों की आत्महत्याओं का जारी दौर जारी हैं।
क्या कहते हैं ‘कृषि विधेयक 2020’ तीनों बिल
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लागू किये गए किसान बिल कौन कौन से है? और किसान इन बिलों का विरोध क्यों कर रहे हैं? आइये विस्तार से जानते हैं…
1. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020
2. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020
3. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020
कृषि विधेयक 2020 pdf डाउनलोड करें
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 :
इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी रोकने और बढ़ती कीमतों को नियंत्रित रखना है। परंतु केंद्र सरकार द्वारा पारित नए कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज आलू आदि उत्पादन को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाने का प्रावधान भी है। इसी बीच केंद्र सरकार दावा कर है कि ऐसा करने से बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को फसल का उचित मूल्य मिल सकेगा जिससे किसानों के आर्थिक दशा सुधरेगी।
किसानों द्वारा इस विधेयक का विरोध क्यों
किसान संगठनों का मत है और उनका कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा लाये गए इस कृषि विधेयक 2020 से किसानों को नहीं बल्कि पूंजीपतियों और कॉरपोरेट घरानों को ज्यादा फायदा होगा। नए बिल के अनुसार सरकार सिर्फ अति-असाधारण परिस्थितियों जैसे अकाल, युद्ध और दूसरी प्राकृतिक धटनाओं में ही वस्तुओं की सप्लाई पर नियंत्रण लगाएंगी।
कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020 :
इस नए कानून के अनुसार किसान अब कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) के अलावा भी अपनी फसल देश में कहीं भी बेच सकेगा। केंद्र सरकार का कहन है कि इस नए कानून से किसानों को मंडी से बाहर भी अपनी फसल बेचने की आजादी मिलेगी। किसान दूसरे राज्य में जाकर भी अपनी फसल बेच सकेगा। इसके अलावा किसानों को मंडियों को कोई फीस भी नहीं देनी होगी।
किसानों द्वारा इस विधेयक का विरोध क्यों
इसे लेकर किसानों का मत है कि केंद्र सरकार ने कृषि विधेयक 2020 में यह स्पष्ट नहीं किया है कि मंडी से बाहर फसल बेचने पर किसान को अपनी फसल का न्यूनतम मूल्य यानि एमएसपी मिलेगा या नहीं। किसानों को यह भी डर है कि फसल उत्पादन ज्यादा होने पर जो उत्पादन मंडियों में नहीं बिकेगा उसे व्यापारी मंडियों के बाहर ही कम कीमत पर फसल खरीदेंगे और वहा एमएसपी की कोई गारंटी सरकार ने नहीं दी हैं।
कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020 :
केंद्र सरकार द्वारा पारित इस नए कृषि विधेयक 2020 कानून के अनुसार अब किसान फसल उगाने से पहले ही व्यापारी से अपनी फसल का समझौता कर सकते हैं। इस समझौते के अनुसार फसल उत्पादन की कीमत और उसकी गुणवत्ता जैसी बातों को शामिल किया जाएगा। इस समझौते के तहत व्यापारी को फसल की डिलिवरी के समय ही दो तिहाई राशि का भुगतान करना पड़ेगा और बाकी का पैसा 30 दिन के अंदर देना होगा। साथ ही खेत से फसल उठाने की जिम्मेदारी भी व्यापारी की होगी।
किसानों द्वारा इस ‘कृषि विधेयक 2020’ का विरोध क्यों
कृषि विधेयक 2020 पर किसानों का कहना है कि सरकार ने भले ही फसल का भंडारण करने की अनुमति दे दी हो, लेकिन किसानों के पास फसल का भंडारण करने की उपयुक्त और उत्तम व्यवस्था ही नहीं है जबकि व्यापारियों के पास फसल का भंडारण करने की व्यवस्था होती है। ऐसे में फसल की कीमत तय करने का अधिकार बड़े व्यापारियों या कंपनियों के पास आ जाएगा और किसानों की भूमिका ना के बराबर हो जाएगी। और फिर किसान वापस से बंधुआ मजदुर बन जायेंगे।
‘कृषि विधेयक 2020’ का निष्कर्ष
यह बात बिल्कुल सही है कि मंडियों मे एक साथ कई दिक्कतें आती हैं किसान इससे खुश भी नहीं है लेकिन सरकार की नई व्यवस्था भी ठीक नहीं हैं, यह अध्यादेश कहता है कि बड़े कारोबारी सीधे किसान उपज खरीद कर सकेंगे लेकिन शायद सरकार यह नहीं जानती की जिन किसानों के पास मोलभाव करने की क्षमता नहीं है और जो व्यापार करना नहीं जानते वे सीधे साधे किसान भाई चाणक्य सोच वाले व्यापारियों से कैसे जीतकर लाभ उठा पाएंगे।
सरकार एक राष्ट्र एवं एक मार्केट बनाने की बात कर रही है लेकिन उन्हें नहीं पता किभारत का किसान जो अपने जिले में अपनी फसल नहीं बेच पाता वह दूसरे राज्य और दूसरे जिले में कैसे उपज बेच पाएंगे और क्या उनके पास इतने साधन हैं और क्या वह उतने सक्षम हैं की अपनी उपज को दूसरे हों जिले में किसी साधन से ले जाकर बेच पायें और क्या वह इसका खर्च उठा पाएंगे। इस अध्यादेश की धारा 4 में बताया गया है कि किसान को उसकी उपज का पूरा पैसा 3 कार्य दिवस में दे दिया जाएगा परन्तु किसान का पैसा व्यापारियों पर फसने के बाद, उसे दूसरे मंडल या प्रांत में बार-बार चक्कर काटने पड़ेंगे।
1 या 2 बीघा वाले किसान के पास न तो इतना पैसा है और ना र ही इतना ज्ञान हैं कि वह इन व्यापारियों से जीत पाएं और ना ही किसानों को इंटरनेट पर अपना माल बेचना आता है। अंत में वह इनके बीच फसकर रह जायेगा। यही कारण है कि किसान इसके विरोध में है।