DAP के दामों में हुई भारी वृद्धि, वेयरहाउस में नया माल आते ही बढ़ गए रेट

किसान न्यूज़। देशभर के किसानों के लिए खेतों में डाली जाने वाली खाद महंगी होने जा रही है। 1200 रुपए प्रति बैग मिलने वाली डीएपी आने वाले दिनों में 1900 रुपए प्रति बैग हो सकती है। खबर की पुष्टि इसलिए भी होती है कि हाल ही में कुछ कंपनियों ने हरियाणा सहित कुछ राज्यों के लिए डीएपी व दूसरी खाद बाजार में उतारी है और इनके बैग पर साफ- साफ एमआरपी 1900 रुपए अंकित किया गया है। हालांकि अभी तक किसी कंपनी ने

रेट बढ़ने की आशंका में तीन गुना ज्यादा खरीद ली डीएपी

हरियाणा कृषि विभाग के सूत्रों ने बताया कि प्रदेश के कृषि क्षेत्र के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध है जिनमें डीएपी और यूरिया शामिल है। सूत्रों ने बताया कि रेट बढ़ने की आशंका के चलते प्रदेश के किसानों ने अप्रैल माह में सामान्य खरीद की तुलना में तीन गुणा अधिक माल खरीद किया है। जिसमें बड़ी मात्रा डीएपी की है। पिछले महीने विश्व की सबसे बड़ी सहकारी संस्था और खाद उर्वरक निर्माता कंपनी इफको ने यह घोषणा की थी कि इफको के पास 11.26 लाख टन पुराना डीएपी स्टॉक में है और इस पुराने स्टॉक को पुराने रेट यानि 1200 रुपए प्रति बैग के हिसाब से बेचा जाएगा। इफको के चंडीगढ़ क्षेत्रीय कार्यालय ने बताया कि अभी भी उनके पास लगभग एक माह का पुराने डीएपी का स्टॉक उपलब्ध है और उसे पुराने रेट पर ही बेचा जा रहा है।

मध्यप्रदेश में बढ़ गए है रेट

मध्यप्रदेश में प्राइवेट एवं सहकारी समितिओं में DAP के रेट बढ़ गए है। यहां पर नया DAP 1500 से 1700 रूपये तक में मिल रहा है। वही सहकारी गोदाम एवं खाद वितरण संस्था में DAP 1700 रूपये में मिल रहा है। जिसमे फ़िलहाल किसी भी प्रकार की सब्सिडी नहीं दी जा रही है। DAP की यह कीमत एक बैग की है जिसका बजन 50KG रहता है। इसे लेकर मध्यप्रदेश में किसानों ने सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर की है।

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मंडियों में नहीं है खाद

उत्तर व मध्य भारत की कई मंडियों तथा खाद विक्रेताओं से संपर्क किया लेकिन किसी के पास भी पुराना या नया स्टॉक होने की पुष्टि नहीं हुई। हरियाणा के एक-दो दुकानदारों ने बताया कि उनके पास 1400 रुपए एमआरपी का कुछ डीएपी आया था जो हाथों हाथ खाली हो गया। इसका अर्थ यह है कि इस समय कहीं भी पुराने रेट का डीएपी उपलब्ध नहीं है और चूंकि डीएपी के नए रेट अभी निर्धारित नहीं हो पाए हैं इसलिए बिक्री केन्द्रों पर स्टॉक भी उपलब्ध नहीं करवाया जा रहा है। अधिकतर किसान अपनी आवश्यकता के अनुसार डीएपी खरीद चुके हैं। आने वाले समय में उन किसानों के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है जिन्हें नरमा-कपास की बिजाई करनी है या उसके बाद की फसलों की बिजाई करनी है।

95 प्रतिशत आयात होता है डीएपी

उल्लेखनीय है कि भारत में डीएपी की जितनी लागत होती है उसका अधिकतर अर्थात 90-95 प्रतिशत तक का माल विदेशों से आयात होता है। आमतौर पर अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया से डीएपी आयात होता है। इतना ही नहीं हमारे यहां होने वाली यूरिया की खपत का 30 प्रतिशत भाग हमें आयात करना पड़ता है। हालांकि केन्द्र सरकार ने हाल ही में देश भर में यूरिया निर्माण करने वाले 10 ऐसे संस्थानों को शुरु किया है जो लंबे अरसे से बंद पड़े थे।

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